Tuesday 29 July 2014

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये दफ़्तर, ये अफ़सर, ये सरकारी दुनिया
ख़ुशामद के मारे नवाबों की दुनिया
ये बिकते हुए तस्लीमातों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

मुरदार ईमान, दुश्वार हालत
चाय के प्यालों की बेकल मसाफ़त
फ़ाइलों पे फैली जिरह की हुक़ूमत
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

तरक्की का लालच, बाबू की ताक़त
किताबों में लिक्खे नियम की हिफ़ाज़त
हर्फ़-ए-मलामत, अफ़्सर की मेहनत
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

नहले पे दहला है इनकी अदालत
सत्ता के गलियारों की है इबादत
हुनर है यां हैरान, बेघर सदाकत
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

7 comments:

  1. दिन-प्रतिदिन आपकी रचनाएं और भी सुन्दर होती जा रही हैं। लिखते रहिये और बाँटते रहिये :-)

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  2. बहुत ख़ूब ! दफ़्तर के हालात का जीवंत चित्रण, बेहद चुनिंदा अल्फ़ाज़ो के माध्यम से ।

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  3. हर्फ़-ए-मलामत, अफ़्सर की मेहनत
    ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...
    वाह!
    साहिर के original को टक्कर देने वाला remake!

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  4. थकान का पूरा असर दिख रहा है भाई....
    इसी मानसिक थकान के असर की अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा

    आपका अदना प्रशंसक
    #मासूम

    ReplyDelete
  5. थकान का पूरा असर दिख रहा है भाई....
    इसी मानसिक थकान के असर की अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा

    आपका अदना प्रशंसक
    #मासूम

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  6. Oh...another remake .but what a true one !

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  7. Oh...another remake .but what a true one !

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