Thursday 29 May 2014

सच

मुझे तकलीफ़ थी ।
झूठ से,
बोलने से, बोलने वालों से ।

एक दिन
मेरे सच को घेर लिया,
समाज ने,
समाज के ठेकेदारों ने ।

सूली का इंतज़ाम कर लिया,
मुकद्दमा शुरू कर दिया ।

एक-एक करके गवाह बुलाए गए,
मुलज़िम की अक़ीदत का इम्तिहान शुरू हुआ ।

कटघरे के अंदर का आसमान देखा ।
सवालों के तीरों ने,
मौत का नज़ारा दिखाया ।
विपदाओं का अंधड़ प्रचंड हो उठा ।
यूँ लगा,
अब और नहीं,
साँस बाकी ।

आँखों से गिरने का दर्द,
आँखों में आ गया ।
जीते जी मौत का सामान,
तैयार हो गया ।

विश्वास ने सवाल उठा लिया,
सफीना आग के तूफान में आ गया ।

आज देखता हूँ तो

सच की पतवार ही रह गई,
हाथ में ।
डोलते विश्वास को संभाल लिया,
पता नहीं किसने ।
अचानक
कसीदे  पढ़े जाने लगे,
ईमानदारी
और कार्यप्रणाली पर चर्चा हुई ।

कहीं से आवाज़ उठी---
अरे..............
ये तो वही है,
जिसे सच की बीमारी है ।

ख़ैर,
अंतिम निर्णय लिया गया,
एक वर्ष का समय लगा ।
कई मौत मरना पड़ा ।
आरोप पत्र दाखिल न हो सका,
अहसान जताकर बरी किया गया ।

आज सोचता हूँ

तो सच को कटघरे में पाता हूँ ।
सच ने बचा लिया ?
शायद,
या भँवर में ला दिया ?
शायद ।


Saturday 17 May 2014

अब की बार - चुनाव २०१४

चुनावी घमासान मचा है,
एक दूसरे को गिराने में हर कोई लगा है ।
मुझसे बेहतर कोई नहीं - रट लगा रखी है ,
अहद-ए-राह सुनसान पड़ी है ।

खाली न जाए कोई वार
अब की बार - पलटवार ।

एक ओर सत्ता का नशा
दूसरी ओर सत्ता पाने का नशा ।
ये देश का वो है अंग,
जिसे करना ही होगा भंग ।

दिखते कम ही हैं आसार
अब की बार - आर या पार ।

क्षेत्रीय दलों की दुकानें चलेंगी,
एक -एक कुर्सी फ़िर बिकेगी ।
जिसका होगा सूपड़ा साफ़,
उसकी जाग़ीर नीलाम होगी ।

कितना है यह देश पे भार
अब की बार - बेड़ा पार ।

एक ज़दीद दल से आस है,
परवाज़ जिसकी अज़ाब है ।
मसाफ़त पे जिसके सवाल है,
शहादत पे जिसके बवाल है ।

इंतज़ार अब है दुश्वार,
अब की बार - बेकरार ।

बाग

सब्ज़ पेड़ों से गिरती अनगिनत लाशें
सूखी चादर की तरह घास पर पड़ी हैं ।

नियम है कि प्राण निकलने पर
क्रिया जल्द होनी चाहिए ।
लाश सड़ने लगती है ।

मैं पत्तों की लाशें संभाल रहा था ।
मुर्दाघर से बाग बना रहा था ।

प्राणों का संचार है ।
थक कर चूर हूँ,
शायद यही मेरी गति है ।

घुटन

एक चीख लगाने का दिल है
रोंधे हुए गले से आवाज़ तो आए

मैं ऐसे ही ठीक था
क्यों फ़िर दुनिया मसीहा बनाए

इम्तिहान के लिए तैयार हैं
शर्त है ख़ुदा पाक-दामन को तो बचाए

सब्र टूट रहा है, और नहीं
पाँच उंगली एक हों और होश ठिकाने आएं