Tuesday 29 July 2014

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये दफ़्तर, ये अफ़सर, ये सरकारी दुनिया
ख़ुशामद के मारे नवाबों की दुनिया
ये बिकते हुए तस्लीमातों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

मुरदार ईमान, दुश्वार हालत
चाय के प्यालों की बेकल मसाफ़त
फ़ाइलों पे फैली जिरह की हुक़ूमत
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

तरक्की का लालच, बाबू की ताक़त
किताबों में लिक्खे नियम की हिफ़ाज़त
हर्फ़-ए-मलामत, अफ़्सर की मेहनत
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

नहले पे दहला है इनकी अदालत
सत्ता के गलियारों की है इबादत
हुनर है यां हैरान, बेघर सदाकत
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।

Tuesday 22 July 2014

ग़ज़ल-3 है सीधी सच्ची बात

1.   है सीधी सच्ची बात मगर सोचते नहीं /
      इंसान ही इंसां के लिए सोचते नहीं

2.   हुक़्मरान ज़ुल्म किए जाने में माहिर /
      मुफ़्लिस की जान के लिए सोचते नहीं

3.    बूढ़े शजर को काट के किवाड़ बन गया /
       चिड़ियों के घर उजाड़ दिए सोचते नहीं

4.    नफ़रत का ज़हर फ़ैल रहा है समाज में /
       बुझ रहे चाहत के दिए सोचते नहीं

5.     चेहरों पे है नकाब रूह ज़ख़्म-ए-हाल है /
        फ़र्ज़ क्या है किस लिए सोचते नहीं


Sunday 13 July 2014

ग़ज़ल - 2 जाने क्या वक्त है


1.  जाने क्या वक्त है क्या दौर है जीने के लिए /
     ज़िंदगी रेत सी, हाथों से फ़िसल जाएगी

2.  ख़त्म होता नहीं, सदियों का सफ़र सड़कों पर /

     एक दिन चीख भी, इस शोर में दब जाएगी

3.  ग़ालिबन ज़ौक-ए-दुआ में है तसव्वुर की कमी / 

     ज़िन्दगी धूप में कोहरे सी पिघल जाएगी

4.   जब तलक सीने में चलती हैं ये साँसें बेहतर /

      है यकीं फिर भी कि इक रोज़ कज़ा आएगी

5.   हैं ख़तावार कि इन आँखों में अब चैन कहाँ /
      ख़्वाब दिखते हैं कि जब आँखों में नींद आएगी

6.    सब्र होता नहीं अब और ज़माने से कहो /

मौत ज़ालिम है, बग़ावत पे उतर आएगी


7. साज़ नासाज़ है जीवन का मगर होश नहीं /

किस तरह सुर में ये अब शोख़ ग़ज़ल गाएगी

Monday 7 July 2014

ग़ज़ल -1 इंसां जो मोहब्बत में


इंसां जो मोहब्बत में फ़रिश्ता वो हुआ है /
पत्थर वो ख़ुदा है कि, तराशा जो हुआ है


है कौन सी मंज़िल मेरी, जाना है कहाँ पर /
अंधा है ये रस्ता कि जिसे मैंने चुना है



इस दिल के सवालात हैं जो देते हैं मुश्किल /

राहत ही नहीं है कि जवाबों का सिला है



सूरज नहीं करता है हर घाम को रौशन /

अपना तो ये घर है कि चरागों का जला है



दरया में है तूफ़ान जहाँ, कर्म ख़ुदा है /

साहिल से भला है जो भँवर, मुझको मिला है



सादादिल-ए-मिज़ाज रक्खा है उम्र-भर

काँटों की सेज पर ग़ुलाबों सा खिला है


चलना है सबब ज़ीस्त का लम्बा ये सफ़र है
रहबर का न साया है यहाँ सिर्फ़ धुआँ है

Wednesday 2 July 2014

Random thoughts

Dated 02.07.2014

1.  इस दिल के सवालात हैं जो देते हैं मुश्किल
राहत ही नहीं है कि जवाबों का सिला है
Based on Ashkon mein jo paya hai by Sahir Sb

2.  सूरज नहीं करता है हर घाम को रौशन
अपना तो ये घर है कि चरागों का जला है

Based on Ashkon mein jo paya hai by Sahir Sb

3.  काफ़िला नहीं, रहगुज़र नहीं
इस सफ़र के हम आश्ना नहीं

क्यों ये प्यास है, क्या तलाश है
ख़ौफ़ में करें क्यों न सर कलम

Based on Waqt ne kiya kya hasee'n sitam by Kaifi Sb.

Dated 03.07.2014

4.  बादल से आसमाँ का रिश्ता है प्यार का
सूरज के देखने को तड़पता नहीं धुआँ

@AshishJog @frozenmusik
Based on Aankhon mein jal raha hai by Gulzar Sb.

Dated 06.07.2014

5.  दरया में है तूफ़ान जहाँ, कर्म ख़ुदा है
साहिल से भला है जो भँवर, मुझको मिला है

@AshishJog
Based on Ashkon mein jo paya hai

6.  सादादिल-ए-मिज़ाज रक्खा है उम्र-भर
काँटों की सेज पर ग़ुलाबों सा खिला है