Tuesday 22 July 2014

ग़ज़ल-3 है सीधी सच्ची बात

1.   है सीधी सच्ची बात मगर सोचते नहीं /
      इंसान ही इंसां के लिए सोचते नहीं

2.   हुक़्मरान ज़ुल्म किए जाने में माहिर /
      मुफ़्लिस की जान के लिए सोचते नहीं

3.    बूढ़े शजर को काट के किवाड़ बन गया /
       चिड़ियों के घर उजाड़ दिए सोचते नहीं

4.    नफ़रत का ज़हर फ़ैल रहा है समाज में /
       बुझ रहे चाहत के दिए सोचते नहीं

5.     चेहरों पे है नकाब रूह ज़ख़्म-ए-हाल है /
        फ़र्ज़ क्या है किस लिए सोचते नहीं


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