Monday 23 July 2018

सच कहता हूँ

सच कहता हूँ - कहने के लिए कसमें नहीं खाता 
चुप रहता हूँ अक्सर अब कि सच मैं कह नहीं पाता 



Wednesday 18 July 2018

बारिश भी पक गई है

बारिश भी पक गई है,
आते आते थक गई है .
'एक्चुअली'... ज़मीं के पास
उसको रिझाने की हरियाली बची नहीं है.
आई...
सब पानी-पानी कर दिया,
एक बार.
कपड़े पहने,
और करवट बदल के सो गई .  

Wednesday 20 June 2018

जवाब क्या देता ?

जवाब क्या देता ?
दश्त में कैसे खिला ?
अहले-हक़ का ये सिला ?

इल्म में आलिम ,
सुकून का दरिया !
खाक़ में खुश था ,
आसमान में कैसे मिला ?

न धूप  की दहलीज़ ,
न चांदनी की बिछौना !
न किसी से तकाज़ा ,
न कोई गिला !

किस बात की जंग थी ?
जाने कौन मुक़ाबिल था !
दस्तार तो फतह की थी ,
लहू मेरा अपना था !

बहती हुई राख में ,
कोई अक्स बनता था !
जवाब तो मैं ही था ,
पर सवाल क्या था ?

हँस- हँस के बात करने से डरने लगा हूँ मैं

हँस- हँस के बात करने से डरने लगा हूँ मैं
बात-बात में बढ़ के कोई, बात न बन जाए

हँस-हँस के बात करने से कतराने लगा हूँ
बात बढ़ न जाए कहीं बात-बात में 

भटकने की चाहत है

भटकने की चाहत है, चल चलें ?
वो क्या कहते हैं - आवारगी ?

कठपुतली से नाच रहे हैं, क्या करें ?
वो क्या कहते हैं - बेचारगी ?

जूनून-ओ-होश गम हैं, फ़िर ?
वो क्या कहते हैं - दीवानगी ?

दिल भर गया है दुनिया से, डाल दें ?
वो क्या कहते हैं - रवानगी ?

सब की सुनने का हासिल है, और क्या ?
वो क्या कहते हैं - नाराज़गी ?

कुछ भी लिखता है 'जुर्रत', तो ?
वो क्या कहते हैं - बेहूदगी ?

जो सोचा पाया है, फ़िर भी है ?
वो क्या कहते हैं - तिश्नगी ?

जीना इसी का नाम है, वो तो है ?
वो क्या कहते हैं - ज़िन्दगी ? 

Tuesday 19 June 2018

ई-वे बिल

"ये ट्रक आगे नहीं जायेगा ! किसका है ? ई-वे बिल दिखाइए ?"
"जी ? मेरा है ! ई-वे बिल तो नहीं है !"
"नहीं है ? आप जानते हैं ई-वे बिल के बिना ट्रक की आवाजाही मुमकिन नहीं है ! क्या सामान है ?"
"जनाब !....... हुज़ूर.. कुछ ख़याल हैं मेरे ...... "एक्सपोर्ट" के लिए ले जा रहा हूँ ...कागज़ पर "
"आई जी एस टी भरा है इन पर ......या वो भी नहीं है ?"
.......................
.......................
.......................
.......................
"उठिए, दफ्तर नहीं जाना क्या ?"
"और हाँ, जाने से पहले प्लम्बर को फ़ोन कर देना, बाहर का नल लीक हो रहा है !"
"और पौधों को पानी भी दे देना, पुदीना सूख रहा है !"
........
- आँखें मलते हुए मैं उठा ...... सरसरी नज़र से अखबार देखा !

-कल रात सड़क पर कुछ खयालों ने दम तोड़ दिया ! "पेरिशेबल गुड्स" थे !

सोचता हूँ कुछ ले दे के माल छुड़ा लिया होता !