Sunday 13 July 2014

ग़ज़ल - 2 जाने क्या वक्त है


1.  जाने क्या वक्त है क्या दौर है जीने के लिए /
     ज़िंदगी रेत सी, हाथों से फ़िसल जाएगी

2.  ख़त्म होता नहीं, सदियों का सफ़र सड़कों पर /

     एक दिन चीख भी, इस शोर में दब जाएगी

3.  ग़ालिबन ज़ौक-ए-दुआ में है तसव्वुर की कमी / 

     ज़िन्दगी धूप में कोहरे सी पिघल जाएगी

4.   जब तलक सीने में चलती हैं ये साँसें बेहतर /

      है यकीं फिर भी कि इक रोज़ कज़ा आएगी

5.   हैं ख़तावार कि इन आँखों में अब चैन कहाँ /
      ख़्वाब दिखते हैं कि जब आँखों में नींद आएगी

6.    सब्र होता नहीं अब और ज़माने से कहो /

मौत ज़ालिम है, बग़ावत पे उतर आएगी


7. साज़ नासाज़ है जीवन का मगर होश नहीं /

किस तरह सुर में ये अब शोख़ ग़ज़ल गाएगी

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