Tuesday 5 April 2016

बेवकूफ़

बेवकूफ़ @dogtired1
पिछले 22 सालों से लगातार बिना नागा ज़िन्दगी के 8 घंटे सरकार को लगान स्वरुप दे रहा हूँ . लगान क्या - चाकरी है,  न कोई  लाग लपेट और न ही फल की इच्छा.  शाम 6 बजे दफ़्तर से निकलते ही  अंतर्मन का  सूर्योदय होता है. न तीन में न तेरह में, न दुनियादारी की परवाह, न ऊंचा उड़ने की ख्वाहिश. न ग़लत सोचा न बुरा किया. ज़िन्दगी की दौड़ में पैदल मैं भी शुमार हूँ. लेकिन अपने आस-पास लोगों की रफ़्तार से डरता हूँ क्योंकि लोग समझाते हैं – बेवकूफ़ी न कर, बहती गंगा में हाथ धो ले.

बेवकूफ़ हूँ या बेवकूफ़ी कर लूँ. 

1 comment:

  1. अंतर्द्वंद - सही सवाल हैं, पर जवाब सिर्फ आपके ही पास है :)

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