Tuesday 23 February 2016

आज फिर खुद से मूलाकात हो गई

आज फिर ख़ुद से मूलाकात हो गई,
खिली धूप में फिर बरसात हो गई

एक छोटा-सा सच बोल बैठा,
जाने क्यों दिन में रात हो गई

अंधे ने रेवड़ी क्या खूब बाँटी,
वज़ीर ले कर भी मात हो गई

इज़हारे-तमन्ना और क्या करता,
आँखों-आँखों में मात हो गई

ये दुनिया है दुनिया 'जुरअत' मियाँ
जहाँ आँखें बंद की घात हो गई

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