पानी गया ऊपर से सर के, कर भला अब कुछ तो कर मुल्क पहुँचा है रसातल, ऐ ख़ुदा अब कुछ तो कर
मैं ही मैं हूँ अब जहां में, और सब पैरों की धूल
बदग़ुमानी छोड़ कर, तू बाज़ आ, अब कुछ तो कर
लुप्त होते जानवर, व पेड़-पौधे विश्व से
प्रकृति का ह्रास कर, की है ख़ता अब कुछ तो कर
ज़िन्दगी का है तकाज़ा, जो न समझा प्यार को
मंज़िल-ए-मक्सूद तो है लापता अब कुछ तो कर
फ़ितरत-ए-आदम ने पहुँचाया है अब रोज़-ए-जज़ा
साँस लेना भी न हो जाए सज़ा अब कुछ तो कर
True ! ab tto kucch kar ...good ..keep writing and sharing ...
ReplyDeleteThank you Ma'm :))
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