भँवर से कश्ती जो निकले तो फिर कुछ बात होती है
नाख़ुदा को ख़ुदा मानें तो फिर कुछ बात होती है
छौंक है जो झूठ का लज़्ज़त है दौर-ए-ज़िंदगी
सच्चाई से अगर जी लें तो फिर कुछ बात होती है
अँधेरे में है चाहत रौशनी की इस कदर लाज़िम
दिए अब खून से बालें तो फिर कुछ बात होती है
खुशियाँ खरीदने में ही पागल है ये दुनिया
फ़कीरी में जो पा जाएँ तो फिर कुछ बात होती है
विषरहित व दंतहीन है तो फिर क्या बात है
ज़हर पी कर जो न उगले तो फिर कुछ बात होती है
बिगड़ना अब नहीं अच्छा है बिगड़ी बात के ऊपर
बिगड़ी को बना जो ले तो फिर कुछ बात होती है
Bhanwar se kashti jo nikle to fir kuch baat hoti hai
Naakhuda ko Khuda maanei'n to fir kuch baat hoti hai
Chhonk hai jo jhooth ka, lazzat hai daur-e-zindagi
Sachhaai se agar jee lei'n to fir kuch baat hoti hai
Andhere mein hai chaahat raushni ki is qadar laazim
Diye ab khoon se baalei'n to fir kuch baat hoti hai
Khushiyaan khareedne mein hi paagal hai yeh duniya
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