Tuesday, 16 September 2014

ग़ज़ल -12 किसको न इंतज़ार

किसको न इंतज़ार मसर्रत का इन दिनों
दिखता नहीं तूफान है हसरत का इन दिनों

गिरगिट भी शर्मसार है इंसान देख कर
बदला है रंग इस तरह, फितरत का इन दिनों

जो दिन गए सुकून से एहसान जानिए
दिखता नहीं चलन अब, इबादत का इन दिनों

किस से गिला करें अब, किस किस को दोष दें
बेहाल हुआ हाल है कुदरत का इन दिनों

ख़ाक हो रहे हैं ख़्वाब, रूह संगसार है
बोझ है ज़हन पे सदाक़त का इन दिनों

हिन्दू हैं मुसलमान हैं, इंसान नहीं हैं
फैला ज़हर हवा में है नफरत का इन दिनों

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