लिखनी है दास्तां तो लहू को मिला के लिख तासीर में है नर्मी तो फिर तिलमिला के लिख
बेदर्द ज़माने की हैं अपनी ही सीरतें कुछ यूँ कहो कलाम कि दुनिया हिला के लिख
रस्ता जो चुन लिया है तो मुड़ कर न देखना मतलब के आसमान को ज़हर पिला के लिख
जज़्बात मर न जाएं यूँ ही दौड़ धूप में लफ़्ज़ों से कोरे काग़ज़ पर गुल खिला के लिख
दिखता नहीं ख़ुदा तो यूँ मायूस न रहो
खुद अपने ज़हन में ही ख़ुदाई जिला के लिख
Waaah Sandeep keep it up
ReplyDeleteजज़्बात मर न जाएं यूँ ही दौड़ धूप में
लफ़्ज़ों से कोरे काग़ज़ पर गुल खिला के लिख
Shukriya Shalini ji :))
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