सुबह से शाम हो गई
कोशिशें नाकाम हुईं ।
इंकलाबी चाह में
अपनी अना की हार हुई ।
सच के जश्न में चले
ज़बान संगसार हुई ।
रोज़ी के इंतज़ाम में
उम्र यूँ तमाम हुई ।
छल-कपट के राज में
फिर से शह और मात हुई ।
सियासी भेड़चाल में
रूह भी हैरान हुई ।
चेहरों पे चेहरे देख के
चेहरे की न पहचान हुई ।
कोशिशें नाकाम हुईं ।
इंकलाबी चाह में
अपनी अना की हार हुई ।
सच के जश्न में चले
ज़बान संगसार हुई ।
रोज़ी के इंतज़ाम में
उम्र यूँ तमाम हुई ।
छल-कपट के राज में
फिर से शह और मात हुई ।
सियासी भेड़चाल में
रूह भी हैरान हुई ।
चेहरों पे चेहरे देख के
चेहरे की न पहचान हुई ।
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