माया का जाल ही तो है, अपना ही साया तो
राम तो मिलेंगे ही, मिली न माया तो ?
मैं चक्रव्यूह में फँसा ये सोच में गुम हूँ
आ तो गया हूँ पर मैं, निकल ही न पाया तो ?
दरख़्वास्त तो की है, ख़ुदा की शान में मगर ख़त का जवाब आए तो, फिर भी न आया तो ?
यूँ तो ये ज़िन्दगी भी है मस्लात से सनी जीना है एक उम्र ग़र, ज़हर न खाया तो ?
साज़ की आवाज़ में कुछ वो नहीं है बात गाना तो है ये गाना, सुर में न गाया तो ?
चुपड़ी नहीं तो रूखी ही मिल जाएगी रोटी लेकिन ये सोचता हूँ मैं, तनख़्वाह न लाया तो ?
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