Thursday, 28 August 2014

गज़ल - 8 लिखनी है दास्तां तो


लिखनी है दास्तां तो लहू को मिला के लिख तासीर में है नर्मी तो फिर तिलमिला के लिख

बेदर्द ज़माने की हैं अपनी ही सीरतें कुछ यूँ कहो कलाम कि दुनिया हिला के लिख


रस्ता जो चुन लिया है तो मुड़ कर न देखना मतलब के आसमान को ज़हर पिला के लिख


जज़्बात मर न जाएं यूँ ही दौड़ धूप में लफ़्ज़ों से कोरे काग़ज़ पर गुल खिला के लिख

दिखता नहीं ख़ुदा तो यूँ मायूस न रहो खुद अपने ज़हन में ही ख़ुदाई जिला के लिख

Saturday, 23 August 2014

ग़ज़ल -7 यूँ न होगी अब बसर

यूँ न होगी अब बसर तन्हा ख़ुदा के वास्ते

वक़्त है तू कर फ़िदा ये जां किसी के वास्ते



लोग कहते हैं कहेंगे, कुछ भी कर के देख लो

ख़ुद को जीतो ग़र जो चाहो तो खुशी के वास्ते



इस सफ़र में गर्द होगी धूप होगी बे-शुमार

सोच लो चलने से पहले, ज़िन्दगी के वास्ते


वाइज़ की सुन के बात जो निकले नमाज़ को

पहुँचे दर-ए-जानां पे हम दिलबरी के वास्ते


पड़ गए जो इश्क़ में तो हो गई उसकी नज़र

साँसें जो बची हैं वो हैं अब बस उसी के वास्ते




Saturday, 16 August 2014

कर्म किए जा

कर्म किए जा फल की इच्छा न कर
बस, यही तो परेशानी है ।

नई सरकार क्रान्ति लाएगी
मुझे ही तो लानी है ।

अफ़सर ने कह दिया तो कह दिया
आप का विचार तो नादानी है ।

आदमी से घोड़ा और घोड़े से गधा हो गया हूँ
लेकिन मुझे घास और घूस नहीं खानी है ।

जब औक़ात भी इंसान की न रहे
ऐसा जीना तो फिर बेमानी है ।

कितने रंग बदलते हैं लोग
उनका ख़ून ख़ून, मेरा ख़ून पानी है ।

ग़ज़ल - 6 मायाजाल ही तो है


माया का जाल ही तो है, अपना ही साया तो
राम तो मिलेंगे ही, मिली न माया तो ?

मैं चक्रव्यूह में फँसा ये सोच में गुम हूँ

आ तो गया हूँ पर मैं, निकल ही न पाया तो ?


दरख़्वास्त तो की है, ख़ुदा की शान में मगर ख़त का जवाब आए तो, फिर भी न आया तो ?

यूँ तो ये ज़िन्दगी भी है मस्लात से सनी जीना है एक उम्र ग़र, ज़हर न खाया तो ?

साज़ की आवाज़ में कुछ वो नहीं है बात गाना तो है ये गाना, सुर में न गाया तो ?

चुपड़ी नहीं तो रूखी ही मिल जाएगी रोटी लेकिन ये सोचता हूँ मैं, तनख़्वाह न लाया तो ?

Tuesday, 12 August 2014

ग़ज़ल -5 सुबह से शाम हो गई

सुबह से शाम हो गई
कोशिशें नाकाम हुईं ।

इंकलाबी चाह में
अपनी अना की हार हुई ।

सच के जश्न में चले
ज़बान संगसार हुई ।

रोज़ी के इंतज़ाम में
उम्र यूँ तमाम हुई ।

छल-कपट के राज में
फिर से शह और मात हुई ।

सियासी भेड़चाल में
रूह भी हैरान हुई ।

चेहरों पे चेहरे देख के 
चेहरे की न पहचान हुई ।

Monday, 11 August 2014

अश्आर-२

 बद-ग़ुमानी बाग़बान की बराए ख़ुदा अपमान है,
ख़ाक-ए-सोहबत पा के ही इंसां जहाँ में महान है


ज़ख़्म-ए-रूह कुरेदते क्यों हो
मैं जो न हो सकूँ, कहते वो क्यों हो

इक ग़म को सीने से लगा रक्खा है,
शेखी, ऐ शैख़ इतनी, बखेरते क्यों हो

मैं तो आज भी अपने ही आप में गुम था
हयात-ए-हवादिस से सताते क्यों हो

Monday, 4 August 2014

ग़ज़ल - 4 नमक





 नक़्क़ाश की नज़र से नुमायाँ हुआ नमक
 कुछ ज़ख़्म पर पड़ा था ग़मख़्वार का नमक


 
नज़ीफ-ए-नमकख़्वारी* से अदा हुआ नमक
 नज़्म की नवाज़िश में दरोगा हुआ नमक

* शुद्ध स्वामिभक्ति


 
 नायाब हो गई है इंसां की जात लेकिन
 मज़दूर का पसीना, है और क्या नमक 



नमकीन है निहायत आँखों की ये नमी
नौबत यहाँ तक आई, नेमत हुआ नमक


नापाक़ नाख़ुदा की नवाबी है ये नसीहत अहसान तुझ पे है ये, खाया है जो नमक


चैन-ओ-अमन की निस्बत, यक़ीनन हो बेपनाह
ज़्यादा न हो अगर तो, कम भी न हो नमक

Friday, 1 August 2014

अश्आर

ज़िंदा है जो जिग़र में, जज़्बा-ए-जाँनिसारी
जन्नत है ज़िन्दगी ये, जश्न-ए-जहान-ए-फ़ानी*

* नश्वर संसार

नक़्क़ाश की नज़र से नुमायाँ हुआ नमक
कुछ ज़ख़्म पर पड़ा था ग़मख़्वार का नमक


 नज़ीफ-ए-नमकख़्वारी* से अदा हुआ नमक
नज़्म की नवाज़िश में दरोगा हुआ नमक

* शुद्ध स्वामिभक्ति


नायाब हो गई है इंसां की जात लेकिन
मज़दूर का पसीना, है और क्या नमक


नमकीन है निहायत आँखों की ये नमी
नौबत यहाँ तक आई, नेमत हुआ नमक


नापाक़ नाख़ुदा की नवाबी है ये नसीहत
अहसान तुझ पे है ये, खाया है जो नमक


चैन-ओ-अमन की निस्बत, यक़ीनन हो बेपनाह

ज़्यादा न हो अगर तो, कम भी न हो नमक