वक्त बड़ा कारसाज़ है ।
कितने सूरज कितने चाँद गिनकर बोली लगाता है ।
कितने मोती कितने पत्थर नहीं देखता ।
कितनी खुशी कितने ग़म नहीं दिखते ।
कितनी सड़क कितना कच्चा नहीं दिखाता ।
कितने आए कितने गए
पीर भी पैगम्बर भी
इसकी ब्रेक नहीं लगती ।
मौजों पे सवार
वक्त,
अनथक, दौड़ता है ।
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