हाथ इस कदर गंदे हैं
कूची कलम तो झाड़ पोंछ दी
रंगों से धूल जाती ही नहीं ।
तकिए का किला मज़बूत है
उसके आगे एक लाँन भी है
मिट्टी से मगर गेहूँ की खुशबू जाती ही नहीं ।
चलते चलते दूर आ गए हैं
क्या क्या नहीं पाया, लेकिन
जो खोया है उसकी याद जाती ही नहीं ।
कूची कलम तो झाड़ पोंछ दी
रंगों से धूल जाती ही नहीं ।
तकिए का किला मज़बूत है
उसके आगे एक लाँन भी है
मिट्टी से मगर गेहूँ की खुशबू जाती ही नहीं ।
चलते चलते दूर आ गए हैं
क्या क्या नहीं पाया, लेकिन
जो खोया है उसकी याद जाती ही नहीं ।
Waah..kya khayaal hai..! Khub kaha!!
ReplyDeleteThanks Abhilekh
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