अपनी हालत का अहसास नहीं है मुझे
मैंने औरों से सुना हैै कि परेशान हूँ मैं ।
इन्तज़ार में था कि मिलेगी एक झलक
सोचा था कहीं तो ज़मीं से मिलेगा फ़लक ।
रेल की पटरी की तरह चलता चला गया
स्याही ख़त्म हो गई मैं लिखता चला गया ।
अधरों पे मुस्कान लिए फिरता हूँ
रोज़ मैं बार बार छुपछुप के रोता हूँ ।
जीने की कोई अहम तमन्ना न रही
मरने का कोई खास इरादा न रहा ।
मैंने औरों से सुना हैै कि परेशान हूँ मैं ।
इन्तज़ार में था कि मिलेगी एक झलक
सोचा था कहीं तो ज़मीं से मिलेगा फ़लक ।
रेल की पटरी की तरह चलता चला गया
स्याही ख़त्म हो गई मैं लिखता चला गया ।
अधरों पे मुस्कान लिए फिरता हूँ
रोज़ मैं बार बार छुपछुप के रोता हूँ ।
जीने की कोई अहम तमन्ना न रही
मरने का कोई खास इरादा न रहा ।
शब्दों का चुनाव अच्छा है। भावपूर्ण रचना। लिखते रहिये और प्रचारित करते रहिये।
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