इंसां जो मोहब्बत में फ़रिश्ता वो हुआ है /
पत्थर वो ख़ुदा है कि, तराशा जो हुआ है
है कौन सी मंज़िल मेरी, जाना है कहाँ पर /
अंधा है ये रस्ता कि जिसे मैंने चुना है
इस दिल के सवालात हैं जो देते हैं मुश्किल /
राहत ही नहीं है कि जवाबों का सिला है
सूरज नहीं करता है हर घाम को रौशन /
अपना तो ये घर है कि चरागों का जला है
दरया में है तूफ़ान जहाँ, कर्म ख़ुदा है /
साहिल से भला है जो भँवर, मुझको मिला है
सादादिल-ए-मिज़ाज रक्खा है उम्र-भर
काँटों की सेज पर ग़ुलाबों सा खिला है
चलना है सबब ज़ीस्त का लम्बा ये सफ़र है
रहबर का न साया है यहाँ सिर्फ़ धुआँ है
Waah very nice ...इंसां जो मोहब्बत में फ़रिश्ता वो हुआ है
ReplyDeleteThank you Shalini ji :))
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