जवाब क्या देता ?
दश्त में कैसे खिला ?
अहले-हक़ का ये सिला ?
इल्म में आलिम ,
सुकून का दरिया !
खाक़ में खुश था ,
आसमान में कैसे मिला ?
न धूप की दहलीज़ ,
न चांदनी की बिछौना !
न किसी से तकाज़ा ,
न कोई गिला !
किस बात की जंग थी ?
जाने कौन मुक़ाबिल था !
दस्तार तो फतह की थी ,
लहू मेरा अपना था !
बहती हुई राख में ,
कोई अक्स बनता था !
जवाब तो मैं ही था ,
पर सवाल क्या था ?
दश्त में कैसे खिला ?
अहले-हक़ का ये सिला ?
इल्म में आलिम ,
सुकून का दरिया !
खाक़ में खुश था ,
आसमान में कैसे मिला ?
न धूप की दहलीज़ ,
न चांदनी की बिछौना !
न किसी से तकाज़ा ,
न कोई गिला !
किस बात की जंग थी ?
जाने कौन मुक़ाबिल था !
दस्तार तो फतह की थी ,
लहू मेरा अपना था !
बहती हुई राख में ,
कोई अक्स बनता था !
जवाब तो मैं ही था ,
पर सवाल क्या था ?
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