बेवकूफ़ @dogtired1
पिछले 22 सालों से लगातार बिना नागा
ज़िन्दगी के 8 घंटे सरकार को लगान स्वरुप दे रहा हूँ . लगान क्या - चाकरी है, न कोई लाग लपेट और न ही फल की इच्छा. शाम 6 बजे दफ़्तर से निकलते ही अंतर्मन का सूर्योदय होता है. न तीन में न तेरह में, न दुनियादारी
की परवाह, न ऊंचा उड़ने की ख्वाहिश. न ग़लत सोचा न बुरा किया. ज़िन्दगी की दौड़ में
पैदल मैं भी शुमार हूँ. लेकिन अपने आस-पास लोगों की रफ़्तार से डरता हूँ क्योंकि
लोग समझाते हैं – बेवकूफ़ी न कर, बहती गंगा में हाथ धो ले.
बेवकूफ़ हूँ या बेवकूफ़ी कर
लूँ.
अंतर्द्वंद - सही सवाल हैं, पर जवाब सिर्फ आपके ही पास है :)
ReplyDelete