Friday, 28 August 2015

अन्दरूनी कश्मकश

अन्दरूनी कश्मकश में हाल ऐसा है कि 'जुर्अत'
सर झुकाओ तो ही पाओ जान की अब अमान बस

सुर्ख़ है मस्तक धरा का खून की होली के बाद
भगवे हरे के दरमियाँ चाहत सफ़ेदी की है बस

जहां से उठा ले

जहां से उठा ले या गोदी उठा ले
महर होगी मौला मेरे ग़म उठा ले


Sunday, 16 August 2015


ज़िन्दगी की तीन पत्ती

ज़िन्दगी की तीन पत्ती आओ खेलें
'ऊँ साईं राम' की बूटी डालें

खेल में अब हार क्या और जीत कैसी
जिसने जैसी बाज़ी खेली उसकी वैसी

जीतनी है जंग तो पत्ते लगाना सीख
पाल ले कोई हुनर, न देगा कोई भीख

कैसा अजब ये रस्ता है

कैसा अजब ये रस्ता है
मिल जाए तो सस्ता है

चलने वाले को तरस्ता है
सुनते हैं हर जगह वो बसता है

खुद को खोना पड़ता है
खो जाओ तो मिलता है
इंसान क्यों फिर दुनिया में फँसता है

जो चलता है वो हँसता है
रुकते ही शिकंजा कसता है

जन्नत का सज़ायाफ़्ता है
ख़ुदाओं से वाबस्ता है