मुझे तकलीफ़ थी ।
झूठ से,
बोलने से, बोलने वालों से ।
एक दिन
मेरे सच को घेर लिया,
समाज ने,
समाज के ठेकेदारों ने ।
सूली का इंतज़ाम कर लिया,
मुकद्दमा शुरू कर दिया ।
एक-एक करके गवाह बुलाए गए,
मुलज़िम की अक़ीदत का इम्तिहान शुरू हुआ ।
कटघरे के अंदर का आसमान देखा ।
सवालों के तीरों ने,
मौत का नज़ारा दिखाया ।
विपदाओं का अंधड़ प्रचंड हो उठा ।
यूँ लगा,
अब और नहीं,
साँस बाकी ।
आँखों से गिरने का दर्द,
आँखों में आ गया ।
जीते जी मौत का सामान,
तैयार हो गया ।
विश्वास ने सवाल उठा लिया,
सफीना आग के तूफान में आ गया ।
आज देखता हूँ तो
सच की पतवार ही रह गई,
हाथ में ।
डोलते विश्वास को संभाल लिया,
पता नहीं किसने ।
अचानक
कसीदे पढ़े जाने लगे,
ईमानदारी
और कार्यप्रणाली पर चर्चा हुई ।
कहीं से आवाज़ उठी---
अरे..............
ये तो वही है,
जिसे सच की बीमारी है ।
ख़ैर,
अंतिम निर्णय लिया गया,
एक वर्ष का समय लगा ।
कई मौत मरना पड़ा ।
आरोप पत्र दाखिल न हो सका,
अहसान जताकर बरी किया गया ।
आज सोचता हूँ
तो सच को कटघरे में पाता हूँ ।
सच ने बचा लिया ?
शायद,
या भँवर में ला दिया ?
शायद ।
झूठ से,
बोलने से, बोलने वालों से ।
एक दिन
मेरे सच को घेर लिया,
समाज ने,
समाज के ठेकेदारों ने ।
सूली का इंतज़ाम कर लिया,
मुकद्दमा शुरू कर दिया ।
एक-एक करके गवाह बुलाए गए,
मुलज़िम की अक़ीदत का इम्तिहान शुरू हुआ ।
कटघरे के अंदर का आसमान देखा ।
सवालों के तीरों ने,
मौत का नज़ारा दिखाया ।
विपदाओं का अंधड़ प्रचंड हो उठा ।
यूँ लगा,
अब और नहीं,
साँस बाकी ।
आँखों से गिरने का दर्द,
आँखों में आ गया ।
जीते जी मौत का सामान,
तैयार हो गया ।
विश्वास ने सवाल उठा लिया,
सफीना आग के तूफान में आ गया ।
आज देखता हूँ तो
सच की पतवार ही रह गई,
हाथ में ।
डोलते विश्वास को संभाल लिया,
पता नहीं किसने ।
अचानक
कसीदे पढ़े जाने लगे,
ईमानदारी
और कार्यप्रणाली पर चर्चा हुई ।
कहीं से आवाज़ उठी---
अरे..............
ये तो वही है,
जिसे सच की बीमारी है ।
ख़ैर,
अंतिम निर्णय लिया गया,
एक वर्ष का समय लगा ।
कई मौत मरना पड़ा ।
आरोप पत्र दाखिल न हो सका,
अहसान जताकर बरी किया गया ।
आज सोचता हूँ
तो सच को कटघरे में पाता हूँ ।
सच ने बचा लिया ?
शायद,
या भँवर में ला दिया ?
शायद ।