Sunday, 16 March 2014

दिल

ये क्या जलता सा रहता है सीने में
बुझता है तो बस अश्कों की बारिश में

पत्थर की कायनात के क्या कहने
भर दिया शीशा एक मेरे ही सीने में

खिलौना समझकर खेलते हैं खेलने वाले
हम टूट जाते हैं बस यूँ ही खेल खेल में

काम से काम रखना भी हुनर है
क्यों रोता है फिर ये सुर्ख़ रंग में

कच्चा खिलाड़ी न समझे कोई
पाले नहीं बदलते हम खेल में


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