RUMINATIONS
Square peg in a circular hole trying to fit in.
Monday, 30 January 2017
नज़र धुंधलाए ज़माना हुआ है
ख़्वाब अब भी एच डी नज़र आ रहे हैं
ग़लती ये मैं कब से करने लगा
नौकरी से 'जुर'रत' दिल लगाने लगा
पत्थर पे रख के पत्थर,
पत्थर पे मारें पत्थर।
बच्चों का खेल था पर,
पानी हुए थे पत्थर।
पानी ने रंग बदला,
आँखों में उतर आया।
दरिया हुआ था पानी,
आँखें हुई थी पत्थर।
आँखों में इक ग़ुमां था,
सच में बदल गया जो।
रास आया न जहाँ को,
खाए ग़ुमां ने पत्थर।
जहां से उठा ले या गोदी उठा ले
महर होगी मौला मेरे ग़म उठा ले
बिगड़ना अब नहीं अच्छा है बिगड़ी बात के ऊपर
बिगड़ी को बना जो ले तो फिर कुछ बात होती है
सेक लग सकता है सावधान,
ज़हन में आग लगी है कोई
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोलता है कि बताऊँ तुझे
वक़्त औ' नज़र
वक़्त औ' नज़र में महात्मा हैं
हम और आप भी तो आत्मा हैं
आओ जिला लें उस सोच को
वक़्त है अभी, यही प्रार्थना है
क्या मुँह दिखलाओगे उसको
असैस्मैंट करने वाला परमात्मा है
और तो क्या, चल डूब जाते हैं
दरिया पार भी तो करना है
अपनी अपनी सोच
अपनी अपनी सोच है, अपनी अपनी तीरगी
बिन जले चराग़-ए-अक़्ल दूर ये होगी नहीं
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)