Monday, 29 February 2016

सर चढ़ के ज़हर घोल, बोल रहा है सफ़्फ़ाक
शातिर का शर्मनाक सबब बेज़ुबान है

Tuesday, 23 February 2016

आज फिर खुद से मूलाकात हो गई

आज फिर ख़ुद से मूलाकात हो गई,
खिली धूप में फिर बरसात हो गई

एक छोटा-सा सच बोल बैठा,
जाने क्यों दिन में रात हो गई

अंधे ने रेवड़ी क्या खूब बाँटी,
वज़ीर ले कर भी मात हो गई

इज़हारे-तमन्ना और क्या करता,
आँखों-आँखों में मात हो गई

ये दुनिया है दुनिया 'जुरअत' मियाँ
जहाँ आँखें बंद की घात हो गई