Monday 7 July 2014

ग़ज़ल -1 इंसां जो मोहब्बत में


इंसां जो मोहब्बत में फ़रिश्ता वो हुआ है /
पत्थर वो ख़ुदा है कि, तराशा जो हुआ है


है कौन सी मंज़िल मेरी, जाना है कहाँ पर /
अंधा है ये रस्ता कि जिसे मैंने चुना है



इस दिल के सवालात हैं जो देते हैं मुश्किल /

राहत ही नहीं है कि जवाबों का सिला है



सूरज नहीं करता है हर घाम को रौशन /

अपना तो ये घर है कि चरागों का जला है



दरया में है तूफ़ान जहाँ, कर्म ख़ुदा है /

साहिल से भला है जो भँवर, मुझको मिला है



सादादिल-ए-मिज़ाज रक्खा है उम्र-भर

काँटों की सेज पर ग़ुलाबों सा खिला है


चलना है सबब ज़ीस्त का लम्बा ये सफ़र है
रहबर का न साया है यहाँ सिर्फ़ धुआँ है

2 comments:

  1. Waah very nice ...इंसां जो मोहब्बत में फ़रिश्ता वो हुआ है

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