Saturday 17 May 2014

अब की बार - चुनाव २०१४

चुनावी घमासान मचा है,
एक दूसरे को गिराने में हर कोई लगा है ।
मुझसे बेहतर कोई नहीं - रट लगा रखी है ,
अहद-ए-राह सुनसान पड़ी है ।

खाली न जाए कोई वार
अब की बार - पलटवार ।

एक ओर सत्ता का नशा
दूसरी ओर सत्ता पाने का नशा ।
ये देश का वो है अंग,
जिसे करना ही होगा भंग ।

दिखते कम ही हैं आसार
अब की बार - आर या पार ।

क्षेत्रीय दलों की दुकानें चलेंगी,
एक -एक कुर्सी फ़िर बिकेगी ।
जिसका होगा सूपड़ा साफ़,
उसकी जाग़ीर नीलाम होगी ।

कितना है यह देश पे भार
अब की बार - बेड़ा पार ।

एक ज़दीद दल से आस है,
परवाज़ जिसकी अज़ाब है ।
मसाफ़त पे जिसके सवाल है,
शहादत पे जिसके बवाल है ।

इंतज़ार अब है दुश्वार,
अब की बार - बेकरार ।

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