Thursday 13 March 2014

ठीक ठीक लगा लो

ये सब उसी का किया धरा है ।
न मेरी आँख बंद करता,
न मेरा पैर कुर्सी से टकराता,
न मैं दर्द से कराहता ।
अब बाम लगाकर बैठा हूँ ।
भला ये कहाँ का इंसाफ है ।

सुना है सारे जगत का है वो कर्ता धर्ता
उसकी मर्ज़ी बिना हिलता नहीं कोई पत्ता ।
फिर उसकी ऐसी मर्ज़ी क्यों ?
मैंने किसका क्या बिगाड़ा ।
अब पिछले जन्म में कोई ग़लती की भी है,
तो कोई बात नहीं ।
इंसान तो ग़लतियों का पुतला है ।

ठीक ठीक लगा लो
कुछ ले दे के देख लो

इसमें नाराज़ होने की क्या बात है ।
इसमें सज़ा देने की क्या बात है ।
अच्छा ........
इंसान पैदा हुआ है
तो परेशान तो होगा ।
कोई कम तो कोई ज़्यादा ।

तो भी ठीक ठीक लगा लो
कुछ ले दे के देख लो ।

ओहो....
इंसान की नियति है आत्मोन्नति ।
आत्मा उसी का हिस्सा है
जब तक आत्मा पक कर
उस जैसी नहीं होती,
ये जन्म मरण का चक्र चलता रहेगा ।
आत्मा को कर्मों से पका रहे हैं ।

जाने कब पकेगी ?
हमारी दाल गलेगी ?

कम आँच में पकी तो
खीर भी लज़्ज़तदार होती है ।
ज़रा आँच तेज़ करो न ।

ठीक ठीक लगा लो
कुछ ले दे के देख लो

मेरे पास वक्त कम है
और काम बहुत है ।

पकने के लिए खीर नहीं आत्मा है ।

दर्द कुछ कम हुआ लगता है
कुछ पका पका सा लगता है ।

1 comment:

  1. Simple. .Lekin Dil tak...loved it...And have lived it :)

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